अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ थे à¤à¤• गà¥à¤£à¤—à¥à¤°à¤¾à¤¹à¥€ व शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ विदà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ सन 1978 में जब वे थे कटनी में तब पंडित शà¥à¤°à¥€ धनà¥à¤¯ कà¥à¤®à¤¾à¤° जी के साथ रहा करते थे पंडित जी धारà¥à¤®à¤¿à¤• व सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯à¤¶à¥€à¤² थे, अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ पंडित जी के साथ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ जैसी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को करते थे उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के साथ à¤à¥‹à¤œà¤¨ करते व लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ आदि à¤à¥€ जाते पंडितजी à¤à¥€ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ समय समय पर अचà¥à¤›à¥€-अचà¥à¤›à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• कहानियां । यही कारण था कि वे à¤à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• निडर छातà¥à¤° थे ।
अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ के कटनी शांति निकेतन सà¥à¤•à¥‚ल में लगा था à¤à¤• वृकà¥à¤·, किसी ने अरविंद से कहा, देखो अरविंद उस वृकà¥à¤· के पास रातà¥à¤°à¤¿ में नहीं जाना वहां चà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² रहती है, अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ ने सोचा चà¥à¤¡à¥ˆà¤² कैसी होती है चलकर देखना चाहिà¤, निरà¥à¤à¥€à¤• अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ पहà¥à¤‚च गठचà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² से मिलने, पर ये कà¥à¤¯à¤¾? चà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² से तो मà¥à¤²à¤¾à¤•à¤¾à¤¤ à¤à¥€ ना हो सकी। वे वापस आ गठतो अनà¥à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उकसाया और बोले- अचà¥à¤›à¤¾, तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ चà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² से डर नहीं लगता, तो रातà¥à¤°à¤¿ à¤à¤° इस वृकà¥à¤· पर बैठकर दिखाओ, अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ निरà¥à¤à¥€à¤•à¤¤à¤¾ से वृकà¥à¤· पर चढ़ गये तथा रात à¤à¤° णमोकार मंतà¥à¤° पढते बैठे रहे परंतॠन तो कोई चà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² आई और ना ही उसके à¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥‚त-पà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥¤ जो निरà¥à¤à¤• होता है, णमोकार मंतà¥à¤° पर दृढ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨ रखता है उसके पास आने से तो चà¥à¤¡à¤¼à¥ˆà¤² à¤à¥€ डरती है।
अरविंद à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ की निडरता और दृढ़ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ ने ही तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बना दिया à¤à¤• महान संत - आचारà¥à¤¯ विराग सागर जी
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )