बचपन के संसà¥à¤•à¤¾à¤° ही à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ की उजà¥à¤œà¤µà¤²à¤¤à¤¾ के दिगà¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤• होते हैं । बचà¥à¤šà¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤¯: बैट- बलà¥à¤²à¤¾ , चोर-सिपाही आदि खेल खेलते हैं परनà¥à¤¤à¥ टिनà¥à¤¨à¥‚ का शोक कà¥à¤› à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ ही था । वे सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ थे महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की कहानियाà¤, कà¤à¥€ दादी से तो कà¤à¥€ बà¥à¤† से ।
सन 1967 में पथरिया के लाल ने à¤à¤• दिन बà¥à¤† के मà¥à¤– से मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œà¥‹à¤‚ की कहानी सà¥à¤¨à¥€ । फिर कà¥à¤¯à¤¾ था , छोटे चार वरà¥à¤· के टिनà¥à¤¨à¥‚ बन गठमहाराज । à¤à¤• हाथ से मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ ले ली, दूसरे में पकड़ा à¤à¤¾à¥œà¥‚-लोटा और निकल पड़े आहार को । बोले - माठपड़गाह लो, महाराज आये हैं । माठजब बचà¥à¤šà¥‡ की वह छवि देखती हैं तो मन ही मन मà¥à¤¸à¥à¤•à¤°à¤¾à¤¤à¥€ है । महाराज को पड़गाहने में विलमà¥à¤¬ हà¥à¤† तो टिनà¥à¤¨à¥‚ महाराज बोले- माठजलà¥à¤¦à¥€ पड़गाह लो नहीं तो महाराज आगे चले जायेंगे । माठने à¤à¤Ÿ से पड़गाया और उचà¥à¤šà¤¾à¤¸à¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कराया तथा महाराज के निरà¥à¤µà¤¿à¤˜à¤¨ आहार संपनà¥à¤¨ कराये । माठबचà¥à¤šà¥‡ की अटखेलियाठदेख मन ही मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ । फिर विचार में डूब गई कि मेरा टिनà¥à¤¨à¥‚ सचमà¥à¤š तो महाराज नहीं बन जायेगा ?
माठका वह विचार आज मूरà¥à¤¤ रूप ले चà¥à¤•à¤¾ है तथा कल का वह छोटा टिनà¥à¤¨à¥‚ जो महाराज कि नक़ल उतारता था , आज वह टिनà¥à¤¨à¥‚ वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• दिगमà¥à¤¬à¤° वेश को धारण कर à¤à¤• विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ आचारà¥à¤¯ परमेषà¥à¤Ÿà¤¿ परम पूजà¥à¤¯ गणाचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी महाराज के रूप में विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं और धरती तल को अपनी पावन -रज से गौरवानà¥à¤µà¤¿à¤¤ कर रहा हैं ।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )