गà¥à¤°à¥à¤µà¤° विराग सागर जी के बचपन की à¤à¤• बात है । लगà¤à¤— सन १९६ॠकी , जब टिनà¥à¤¨à¥‚ जी चार वरà¥à¤· के हो गये । जो à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखता तो कपूरचंद जी से कहता - सेठजी ! अब बाल मंदिर में दाखला करा दो, पर माता-पिता को पता ही नहीं की हमारा टिनà¥à¤¨à¥‚ पà¥à¤¨à¥‡ लायक हो गया, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तो घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ टिनà¥à¤¨à¥‚ à¤à¥ˆà¤¯à¤¾ छोटे ही दीखते है । à¤à¤• दिन बाल मंदिर के शिकà¥à¤·à¤• उनके घर के यंहा से होते हà¥à¤ निकले, टिनà¥à¤¨à¥‚ को उस समय फोड़ा हो गया था , तो बोले- कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ टिनà¥à¤¨à¥‚ फोड़ा ठीक हो गया ? हाठअब कà¥à¤¯à¤¾ करोगे ?
टिनà¥à¤¨à¥‚ - पà¥à¤¨à¥‡ जाऊंगा सà¥à¤•ूल ।
शिकà¥à¤·à¤• - अचà¥à¤›à¤¾, फिर कà¥à¤¯à¤¾ बनोगे ?
टिनà¥à¤¨à¥‚ - गाà¤à¤§à¥€ जी बनूà¤à¤—ा , हाथ में लाठी लूà¤à¤—ा ।
शिकà¥à¤·à¤• - कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ , लाठी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ लोगे ?
ननà¥à¤¹à¤¾ टिनà¥à¤¨à¥‚ उतà¥à¤¤à¤° न दे सका, बस हà¤à¤¸ कर रह गया । शिकà¥à¤·à¤• कà¥à¤› सोच में पड़ गये । वे सोच नहीं पाये थे की जिस गाà¤à¤§à¥€ की लाठी ने देश से अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹ को बाहर निकाला था उसी पà¥à¤°à¤•ार यह टिनà¥à¤¨à¥‚ à¤à¥€ बड़ा होकर अपने लाठी अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ तपसà¥à¤¯à¤¾ /साधना के बल से आतà¥à¤®à¤¾ में घà¥à¤¸à¥‡ हà¥à¤ करà¥à¤® रूपी शतà¥à¤°à¥à¤“ को बाहर निकालेगा ।
सच, बचपन के सामानà¥à¤¯ संसà¥à¤•ारों का उदय जीवन को महान संसà¥à¤•ार पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है ।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )