पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ने सदैव कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को गले लगाया । निडरता ओर निरà¥à¤à¤¯à¤¤à¤¾ उनमे बालयावसà¥à¤¥à¤¾ से ही थी, बात सन 1966 पथरिया नगर की है, जब टिनà¥à¤¨à¥‚ साà¥à¥‡ तीन साल के थे तब à¤à¤• बार उनकी माठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ घर छोड़ पानी à¤à¤°à¤¨à¥‡ कà¥à¤ पर चली गई , इधर शांत सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¥€ टिनà¥à¤¨à¥‚ से खेलने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बिचà¥à¤›à¥‚ महाराज आ गये , बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था , टिनà¥à¤¨à¥‚ को तो मनो उसका मितà¥à¤° मिल गया , वे उसे पकड़ खेलने लगे , पर यह कà¥à¤¯à¤¾ मितà¥à¤° बिचà¥à¤›à¥‚ ने तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ डंक मार दिया वह रोने लगे , पर टिनà¥à¤¨à¥‚ ने मितà¥à¤° से मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ नहीं तोड़ी । माठके पानी लेकर आने पर उसने टिनà¥à¤¨à¥‚ को रोते देखा , तà¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ टिनà¥à¤¨à¥‚ के हाथ में बिचà¥à¤›à¥‚ दिखाई दिया , माठने बिचà¥à¤›à¥‚ को छà¥à¥œà¤¾à¤¨à¥‡ का उपाय किया तो वह औऱ रोने लगा , गहरी मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ जो हो गयी थी । थोड़ी ही देर में अड़ोस पड़ोस वाले आ गये । उनमे से à¤à¤• वृदà¥à¤§à¤¾ ने कहाठ- बेटा , पकडे रहने से तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ मितà¥à¤° को दà¥à¤ƒà¤– होता है, बस इतना सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही तà¥à¤°à¤‚त उससे छोड़ दिया , वृदà¥à¤§à¤¾ की यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ काम कर गयी औऱ सबने टिनà¥à¤¨à¥‚ की करà¥à¤£à¤¾ व निडरता की बड़ी पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की । टिनà¥à¤¨à¥‚ जी जहाठपहले उस मितà¥à¤° को छोड़ने के नाम से रो रहे थे अब उनके मà¥à¤– पर मà¥à¤¸à¥à¤•à¤¾à¤¨ थी जो मानो कह रही थी की - मेरे छोड़ने पर सà¥à¤–ी होते हो - तो जाओ । फिर वह मितà¥à¤° कà¤à¥€ नहीं आया, न ही उसे जहर दे पाया। अतः टिनà¥à¤¨à¥‚ विष विजयी बन गये ।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )