यह घटना है उस समय की जब पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° मà¥à¤¨à¤¿ अवसà¥à¤¥à¤¾ में विहार कर रहे थे, समय-समय पर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ का मिलन हà¥à¤† अनेक आचारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से तथा मिले अनेकों अनà¥à¤à¤µà¥¤ सनॠ1985 में पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ को सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मिला सरल परिणामी, à¤à¥‹à¤²à¥‡-à¤à¤¾à¤²à¥‡ ओजसà¥à¤µà¥€ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ 108 धरà¥à¤® सागर जी के चरण कमलों में अनà¥à¤à¤µ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पाने का, पहला दिन था सोचा - पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ के साथ ही आहार लेंगे, मन की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ पूरी हà¥à¤ˆ, à¤à¤•à¤¾à¤à¤• पड़गाहन साथ ही हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कहा जाता है - पवितà¥à¤° मन से à¤à¤¾à¤¯à¥€ गई à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ शीघà¥à¤° ही फलदायी होती है। जैसे ही मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के गृहपà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ का अवसर आया तो वे दरवाजे पर ही रà¥à¤• गये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अनà¥à¤¦à¤° जो चंदोवा लगा था वह इतना ही था कि उसके नीचे à¤à¤• ही वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ खड़ा हो सके, और आंख बंदकर सोचने लगे कि अà¤à¥€ तक तो बिना चंदोवे के आहार किया नहीं अब कैसे करें? मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की मà¥à¤–मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ पर आंकित पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ को पढ़ते आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ धरà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤—र जी को देर न लगी अत: वे उठकर दूसरे पाटे पर बैठगये और सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ à¤à¤°à¥‡ इशारे से बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ को चंदोवे के निचे बिठा दिया, फिर कà¥à¤¯à¤¾ था आहार पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हो गया, आहार चल ही रहा था कि बीच में किसी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ ने आकर फोटो खींच लिया। ये कà¥à¤¯à¤¾? मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ तो अंजà¥à¤²à¤¿ छोड़ कर बैठगये, उनका अंतराय हो गया। बाद में आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ के पूछने पर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ ने कारण बताया फोटो खींचा गया इसलिठअंतराय हो गया, तब पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ धरà¥à¤® सागर जी बोले- फोटो खींचने से किसी अगà¥à¤¨à¤¿à¤•à¤¾à¤¯à¤¿à¤• जीव का तो घात हà¥à¤† नहीं अत: इसका अंतराय नहीं करना चाहिà¤à¥¤
विनय गà¥à¤£ समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी ने विनीत à¤à¤¾à¤µ से कहा - पूजà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ आप हमसे जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤ व शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ हैं, हम आपकी बात को कैसे टाल सकते हैं, परनà¥à¤¤à¥ आप से कà¥à¤·à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ हूठपहले इस विषय की चरà¥à¤šà¤¾ में पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€ विमल सागर जी के समकà¥à¤· रखूंगा फिर जैसी उनकी आजà¥à¤žà¤¾ होगी वैसा ही करूà¤à¤—ा, जब आचारà¥à¤¯ धरà¥à¤® सागर जी ने मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के मà¥à¤– से ये शबà¥à¤¦ सà¥à¤¨à¥‡ तो वे बहà¥à¤¤ ही खà¥à¤¶ हà¥à¤ और बोले-नि:संदेह आप à¤à¤• करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯ निषà¥à¤ आदरà¥à¤¶ शिषà¥à¤¯ है, à¤à¤¸à¤¾ ही होना चाहिà¤, शिषà¥à¤¯ को गà¥à¤°à¥ आजà¥à¤žà¤¾ के बिना संघ की नियम पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ में सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ कà¥à¤› à¤à¥€ परिवरà¥à¤¤à¤¨ नहीं करना चाहिठऔर पà¥à¤¨à¤ƒ पूछा कà¥à¤¯à¤¾ चंदोवे में आहार लेने का नियम है आपका? नहीं- तो फिर चंदोवा की कà¥à¤¯à¤¾ आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾? आज तो पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ खपà¥à¤ªà¤° वाले कचà¥à¤šà¥‡ मकान नहीं रहे, जिससे कूड़ा-कचरा गिरे। अब पकà¥à¤•à¥‡ मकान है। तब मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ बोले - हमें आपकी आजà¥à¤žà¤¾ शबà¥à¤¦: सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° है पर मेरा सोचना है कि पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में à¤à¥€ बड़े-बड़े पकà¥à¤•à¥‡ महल होते थे उसमें चंदोबा बांधे जाते थे अà¤à¥€ à¤à¥€ खणà¥à¤¡à¤¹à¤°à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ à¤à¤¸à¥‡ उदाहरण मिले है जिनमें चंदोवा बंधा था। शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में à¤à¤¸à¤¾ नहीं आया कि चांदोबा कचà¥à¤šà¥‡ मकानों में ही बांधे, पकà¥à¤•à¥‡ में नहीं और पकà¥à¤•à¥‡ मकानों में à¤à¥€ जीव-जनà¥à¤¤à¥ छिपकली, मकड़ी जाल आदि तो रहते ही हैं और ये गिर à¤à¥€ सकते हैं, आदि।
à¤à¤• बार आचारà¥à¤¯ धरà¥à¤® सागर जी ने विहार के अवसर पर चौके में बड़े-बड़े जाले लटकते देखे,चंदोवा था नहीं।
अत: आहारोपरानà¥à¤¤ बोले - हाà¤, विराग सागर तà¥à¤® ठीक कह रहे थे। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ सही है। चंदोवा होना ही चाहिà¤à¥¤ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की à¤à¥‚रि-à¤à¥‚रि पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की। अतः पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤°! हम à¤à¥€ आप जैसे करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ शिषà¥à¤¯ बने à¤à¤¸à¤¾ आशीष हमें देना।