जो निरत रहते हैं सदा तपाराधना में à¤à¤¸à¥‡ पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी सनॠ1985 में विराजे थे पाà¤à¤šà¤µà¤¾ में।
à¤à¤• दिन पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ वृतà¥à¤¤à¤¿ परिसंखà¥à¤¯à¤¾à¤¨ वà¥à¤°à¤¤ को धारण कर निकले आहार चरà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥à¤¥, पर ये कà¥à¤¯à¤¾? à¤à¤• चकà¥à¤•à¤°, दूसरा चकà¥à¤•à¤° व तीसरा चकà¥à¤•à¤° à¤à¥€ पूरà¥à¤£ हà¥à¤† परनà¥à¤¤à¥ विधि नहीं मिली, लोगों में शोरगà¥à¤² था आखिर कà¥à¤¯à¤¾ विधि हो सकती है, बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया परनà¥à¤¤à¥ विधि नहीं मिली परिणामसà¥à¤µà¤°à¥à¤ª मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ का उपवास हो गया, सारे चौके वाले उदास थे, रातà¥à¤°à¤¿ के समय à¤à¤• चमतà¥à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤• घटना हà¥à¤ˆ, कà¥à¤› लोगों को रातà¥à¤°à¤¿ में विधि विषयक सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ आया, à¤à¤• महिला ने à¤à¥€ सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ में देखा कि मैं तीन मिटà¥à¤Ÿà¥€ के à¤à¤°à¥‡ कलश लेकर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ का पड़गाहन कर रही हूà¤à¥¤
सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दूसरे दिन उस महिला ने वही विधि रखी अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ सिर पर तीन à¤à¤°à¥‡ कलश लेकर पड़गाहन को खड़ी हो गई फिर कà¥à¤¯à¤¾ था विधि मिलते ही मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ पड़ग गये और निरà¥à¤µà¤¿à¤˜à¥à¤¨ आहार समà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गया।
चारों ओर मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की उतà¥à¤•à¥ƒà¤·à¥à¤Ÿ तपशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤¾ की जय - जयकार होने लगी।