बात है सनॠ1984 की, जब पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी à¤à¤µà¤‚ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सागर जी का विहार पालीताना गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ की ओर चल रहा था | साथ चल रहे थे शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• गण । मà¥à¤•à¤¾à¤® को नजदीक जानकर कà¥à¤› शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ ने मà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¯ से आगे पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ हेतॠआगà¥à¤°à¤¹ किया। संत तो संत होते हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¯à¤¾, वे आगे बढ़ दिये, पर यह कà¥à¤¯à¤¾, चलते-चलते रातà¥à¤°à¤¿ होने लगी, अंधकार छाने लगा, परनà¥à¤¤à¥ ठिकाने का कà¥à¤› पता नहीं । शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ ने निवेदन किया - महाराज शà¥à¤°à¥€, थोड़ी दूरी पर ही मà¥à¤•à¤¾à¤® है। परनà¥à¤¤à¥ आगम आजà¥à¤žà¤¾ से बंधे मà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¯ ने रातà¥à¤°à¤¿ में चलने से साफ इनà¥à¤•à¤¾à¤° कर दिया। जहाठपर मà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¯ रà¥à¤•à¥‡ थे, वहाठआरà¥à¤®à¥€ कैंप लगा था। अत: लोगों ने जैसे-तैसे आरà¥à¤®à¥€ कैमà¥à¤ª वालों को दिगंबर संतों की महिमा व उनके तà¥à¤¯à¤¾à¤—, नियम आदि बताकर à¤à¤• कमरा खाली करवा लिया । मà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¯ ठहर गये। बाहर शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹à¤‚ से आरà¥à¤®à¥€ वालों की चरà¥à¤šà¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤®à¥à¤ हà¥à¤ˆà¥¤ आरà¥à¤®à¥€ वालों ने पहली बार संतों को देखा था, अत: वे उनके बारे में कà¥à¤› जानने को अतà¥à¤¯à¤‚त उतà¥à¤¸à¥à¤• थे। à¤à¤• à¤à¤•à¥à¤¤, शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥-शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• ने कहना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकिया- हमारे दिगंबर जैन संतों की साधना बड़ी कठोर होती है, वे दिन में à¤à¤• ही बार खाते हैं, नगà¥à¤¨ रहते हैं, पैदल विहार करते हैं, केशलोंच करते हैं। à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ की à¤à¤¾à¤·à¤¾ कब शिखर चढ़ गई पता ही नहीं चला। à¤à¤• à¤à¤•à¥à¤¤ ने बतलाया हमारे साधॠतो रात-रात à¤à¤° जागकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हैं। सà¤à¥€ शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤—ण पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ थे। तब तक मà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¯ के कानों में उनको चरà¥à¤šà¤¾ पड़ी। अपने धरà¥à¤® की महिमा कहीं फीकी पड़ जाठतथा इन अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž लोगों की शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ में अंतर न आ जाà¤. यह विचार कर मà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¯ ने विशà¥à¤°à¤¾à¤‚ति नहीं ली अपितॠरात à¤à¤° धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में लीन रहे। पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤§à¥à¤µà¤¨à¤¿ गूंज रही थी - धरà¥à¤® के लिठसब सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤° है। आमी वाले हर आधे घंटे में आ-जा रहे थे । उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अनà¥à¤à¤µ किया कि दोनों मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मगà¥à¤¨ हैं। जैसा सà¥à¤¨à¤¾ था वैसा ही पाया। मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œà¥‹à¤‚ की à¤à¤¸à¥€ कठोर साधना देख वे सà¥à¤¬à¤¹ अंतर शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से à¤à¤°, उनके चरणों में बार-बार नतमसà¥à¤¤à¤• हà¥à¤à¥¤
धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ से अà¤à¤¿à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¤ पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ विराग सागर जी ने धरà¥à¤® की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा हेतॠकषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को नहीं देखा। यह उनकी धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अकाटà¥à¤¯ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का अनà¥à¤ªà¤® उदाहरण है।
उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने पदà¥à¤¯ साहितà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ के विशà¥à¤¦à¥à¤§ कà¥à¤·à¤£ में सचà¥à¤šà¥€ धरà¥à¤® पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के विषय में लिखा है कि
समरà¥à¤ªà¤£ हो जायेंगे फिर
धरà¥à¤® पर / शकà¥à¤¤à¤¿ पर
जà¥à¤Ÿ जायेंगे / मारà¥à¤— पर
बढ़ने में चढ़ने में
मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ सोपान
à¤à¤¸à¥€ हारà¥à¤¦à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾
करेगी सचà¥à¤šà¥€ पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¥¤