जिनका मन सदा लीन रहता है जà¥à¤žà¤¾à¤¨, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ और तप में à¤à¤¸à¥‡ पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ 108 विराग सागर जी महाराज सनॠ1984 में विराजमान थे - à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤—र में । à¤à¤• दिन मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ बैठे थे सामायिक में, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ की गहराइयों में उतरते ही जा रहे थे, समय का पता ही नहीं चला और 1-2 घंटे ही नहीं, हो गये पूरे पाà¤à¤š घणà¥à¤Ÿà¥‡, गà¥à¤°à¥à¤µà¤° तो निराकà¥à¤²à¤¤à¤¾ से धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में लीन थे पर शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹ को हो रही थी आकà¥à¤²à¤¤à¤¾à¥¤ कोई कहता शायद हमसे कà¥à¤› गलती हो गई है या हमने अनà¥à¤•à¥‚ल वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नहीं बनाई। या तो मà¥à¤¨à¤¿à¤°à¤¾à¤œ हमसे रूठगये हैं आदि मनगढ़ंत बातें उठरही थी सà¤à¥€ शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤•à¥‹ के मन में, पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° के कान में जब यह बात सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ पड़ी तो सामायिक का विसरà¥à¤œà¤¨ कर अपनी अमृत तà¥à¤²à¥à¤¯ वाणी में बोले-अरे, आज तो विशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ अपनी तीवà¥à¤°à¤¤à¤¾ पर थी, रोज तो मातà¥à¤° दो घड़ी की ही सामायिक होती है, मन में विचार आया चतà¥à¤°à¥à¤¥à¤•à¤¾à¤² में तो मà¥à¤¨à¤¿ जन चार-चार माह का योग धारण कर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते थे अत: मैं à¤à¥€ करूं, पà¥à¤£à¥à¤¯ योग से अविरल चिंतन धारा बहती गई और मैं उसमें डूबता गया और 6 घड़ी से à¤à¥€ अधिक सामायिक हो गई। जब लोगों को पता चला तो सोचने लगे धनà¥à¤¯ है मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की साधना व निरà¥à¤®à¤² à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¥¤ अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कितनी निषà¥à¤ ा है, आज के समय में à¤à¤¸à¥‡ ही साधकों से धरà¥à¤® जीवंत रह सकता है।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )