घटना है सनॠ1984 की, जब मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर का पà¥à¤°à¤¥à¤® विहार गà¥à¤°à¥ आजà¥à¤žà¤¾-पूरà¥à¤µà¤• शà¥à¤°à¥à¤¤à¤ªà¤‚चमी के दिन à¤à¥€à¤·à¤£ गरà¥à¤®à¥€ में पालीताना से à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤—र चातà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¸ हेतॠमà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त सागर जी के साथ हà¥à¤†à¥¤ प. पू.आ. शà¥à¤°à¥€ विमल सागर जी ने देखा कि मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥€ के पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• तथा चटाई का बसà¥à¤¤à¤¾ कमरे में रखा है तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने किसी शà¥à¤°à¤¾à¤µà¤• के हाथ à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾ दिया, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गà¥à¤°à¥ को ही शिषà¥à¤¯ की चिंता होती है कि वह कैसे विहार में सोयेगा, आदि। पर मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥€ तो अनियत-विहारी थे, निसà¥à¤ªà¥ƒà¤¹à¥€ साधक थे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा इसकी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कौन करेगा। हम किसको कहेंगे कि यह हमारा बसà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾ देना अतः उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसकी आवशà¥à¤¯à¤•à¤¤à¤¾ नहीं समà¤à¥€ बलà¥à¤•à¤¿ निसà¥à¤ªà¥ƒà¤¹à¤¤à¤¾ में बाधक समठउसे संघ में ही à¤à¤¿à¤œà¤µà¤¾ दिया। पू.आ. शà¥à¤°à¥€ को इस बात की जानकारी हà¥à¤ˆ तो पà¥à¤°à¤¥à¤® तो खà¥à¤¶ थे उनकी असहाय मोकà¥à¤– मगà¥à¤—ो सूतà¥à¤° को चरितारà¥à¤¥ देखकर, पर फिर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उनके दोनों बसà¥à¤¤à¥‡ सीधे à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤—र पहà¥à¤à¤šà¤µà¤¾ दिये।
यह थी पू. मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥€ निसà¥à¤ªà¥ƒà¤¹à¤¤à¤¾ तथा अपने गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ का पà¥à¤°à¥‡à¤®-करà¥à¤£à¤¾ उन पर।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )