पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° जब थे मà¥à¤¨à¤¿ अवसà¥à¤¥à¤¾ में, तब गà¥à¤°à¥ आजà¥à¤žà¤¾ से मà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¥à¤µà¤¯ (मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ विराग सागर जी तथा मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤ सागर जी) सनॠ1984 में à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤—र का चातà¥à¤°à¥à¤®à¤¾à¤¸ करने आगे बढ़ दिये, करते जा रहे थे - धरà¥à¤® शूनà¥à¤¯ समाज में धरà¥à¤® संसà¥à¤•ारों को बीजारोपण । à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ यही थी कि à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में यही बीज विकसित हो वृकà¥à¤·à¤¤à¥à¤µà¤ªà¤¨à¥‡ को पाये तथा समाज में धरà¥à¤® हरियाली छाये, समाज सà¥à¤¸à¤‚सà¥à¤•ारित धारà¥à¤®à¤¿à¤• बनें।
पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤° निसंग पवन की तरह समाज को बिना अवगत किठही बढ़ गये अगले मà¥à¤•ाम की ओर। गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤® काल की पà¥à¤°à¤šà¤£à¥à¤¡ धूप दिखा रही थी अपना पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ, नीचे तपती धरती और ऊपर गरà¥à¤® हवा समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ परीषहों को सहते हà¥à¤ मà¥à¤¨à¤¿ दà¥à¤µà¤¯ सोनगढ़ होते हà¥à¤ पहà¥à¤à¤šà¥‡ पड़गाहन किया, गà¥à¤°à¥à¤µà¤° खड़े हà¥à¤ अंजà¥à¤²à¤¿ लगाकर, पहले ही गà¥à¤°à¤¾à¤¸ में आ गया पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• का लंबा धागा। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ उसका अंतराल तो नहीं होता परनà¥à¤¤à¥ बलवान करà¥à¤®à¤£à¤¾à¤‚ गति अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ की गति बलवान होती है, हà¥à¤† यों कि जो महिला आहार दे रही थी उसने जैसे ही मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के हाथ में धागा देखा तो घबरा गई, इतनी à¤à¥€à¤·à¤£ गरà¥à¤®à¥€ व आहार अà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठही हà¥à¤† है अत: उसने हड़बड़ाहट में à¤à¤Ÿà¤•े से, गà¥à¤°à¤¾à¤¸ हाथ से छà¥à¤¡à¤¼à¤¾ लिया। फिर कà¥à¤¯à¤¾, अंतराय पहले तो नहीं था पर अब पिणà¥à¤¡ हरण होने से करना ही था।
उस महिला को बहà¥à¤¤ दà¥à¤ƒà¤– हà¥à¤†, उसने दà¥à¤ƒà¤–ित मन से मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ से कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना की, समता à¤à¤¾à¤µà¥€ मà¥à¤¨à¤¿ रे विराग सागर जी ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ पूरà¥à¤µà¤• आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ दिया और उसी कड़कड़ाती धूप में 15 कि.मी. चलकर शाम को विशà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¿ ली à¤à¤• खेत में, जब खेत वाले को पता चला तो वह à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ से खिंचा चला आया और बोला महाराज शà¥à¤°à¥€, आपने कल से कà¥à¤› नहीं खाया, मैं वà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‚ लाता हूà¤à¥¤ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ ने इशारे से मना कर दिया, तो बोला कि - चाय, दूध पी लेना,। इशारे से नहीं, हम कà¥à¤› नहीं खाते-पीते रातà¥à¤°à¤¿ में। अचà¥à¤›à¤¾, | तो पलंग दरी ले आता हूà¤, खेत की ऊबड़-खाबड़ जमीन आपको चà¥à¤à¥‡à¤—ी। मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ ने मना कर दिया। वह बोला - महाराज, कà¥à¤¯à¤¾ आप हमसे बोलेंगे à¤à¥€ नहीं, रातà¥à¤°à¤¿ में मौन रहते हैं। कोई बात नहीं, मेरा सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ है कि आप जैसे महातà¥à¤®à¤¾ के चरण कम से कम हमारे खेत में तो पड़े।
अपना धनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मानता हà¥à¤† वह रातà¥à¤°à¤¿ à¤à¤° खेत में ही रहा और सेवा à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में लगा रहा।
सचमà¥à¤š गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की साधना महान है, उनकी उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ साधना का ही पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ था कि हर à¤à¤• मन बन जाता गà¥à¤°à¥à¤µà¤° के लिठमंदिर। à¤à¤¸à¥‡ ही पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤°/गà¥à¤°à¥à¤µà¤° के à¤à¤• नहीं अनेक दृषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚त उनकी जीवनी में à¤à¤°à¥‡ पड़े हैं कि पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° ने बिना पूरà¥à¤µ सूचना के ही सà¥à¤µà¤¾à¤µà¤²à¤®à¥à¤¬à¥€ वृतà¥à¤¤à¤¿ को धारण कर अनियत विहार किठऔर कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को à¤à¥€ गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¤µà¤¤à¥ हà¤à¤¸à¤¤à¥‡-हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ सहन किया। आपकी इसी अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ साधना से पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ हो जैन ही नहीं जैनेतर लोगों ने à¤à¥€ आपकी सेवा कर अपने सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ को सराहा है, à¤à¤¸à¥‡ ऋषिवर जयवंत रहें।
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )