पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° थे जब मà¥à¤¨à¤¿ अवसà¥à¤¥à¤¾ में, पावागढ़ की ओर ही विहार चल रहा था सनॠ1984 में | तब à¤à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ आया पूजà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की गà¥à¤°à¥ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ व समरà¥à¤ªà¤£ की परीकà¥à¤·à¤¾ करने। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® उसने मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के चरणों में नमोसà¥à¤¤à¥ किया | फिर पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा के पà¥à¤² बांधने लगा, मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करने के उपरानà¥à¤¤ उसने पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकी पूजà¥à¤¯ आचारà¥à¤¯ विमल सागर जी महाराज की निंदा । मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ कब सहने वाले थे, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आसà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤¾à¤¨ के लिठतो गोविनà¥à¤¦ से बड़े गà¥à¤°à¥ होते हैं। गà¥à¤°à¥ की निंदा सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ तो परमातà¥à¤®à¤¾ की निंदा सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ है, शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में गà¥à¤°à¥ निंदा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठनहीं अपितॠगà¥à¤°à¥‚पदेश सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठमिले हैं फिर जो सदा गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ में निरत रहते हैं वे मà¥à¤¨à¤¿ गà¥à¤°à¥ की निंदा सह à¤à¥€ कैसे सकते थे | अत: बोल पड़े -चà¥à¤ª रहिये, वे हमारे गà¥à¤°à¥ महाराज हैं और उनके बारे में बà¥à¤°à¤¾ कहने का आपको कोई अधिकार नहीं, जौंक नहीं हंस बनो। खून नहीं, दूध पीने की आदत डालो। गà¥à¤°à¤¬à¥€à¤²à¤¾ गोबर की डली मà¥à¤– से बाहर निकाले तो पंकज के पराग का रसासà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ हो सकता है, अनासà¥à¤¥à¤¾ की डली मà¥à¤à¤¹ से निकालते ही शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से, धरà¥à¤® के रस का आसà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ होगा, छिदà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ से गà¥à¤£à¤¾à¤¨à¥à¤µà¥‡à¤·à¥€ बनने पर ही सतà¥à¤¸à¤‚ग में गà¥à¤£ दिखेंगे और गà¥à¤£à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का सफल पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ हो पायेगा, जैसी तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ होगी, वैसी ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिखेगी। संशय पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ को छोड़ निशंक बनने पर ही गà¥à¤£à¥€à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ को देख हृदय में पà¥à¤°à¥‡à¤® उमड़ेगा और पà¥à¤°à¥‡à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ को पाने का साधन है।
मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤° के उपरोकà¥à¤¤ वचन सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही उन विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ के कान खड़े हो गये और अंदर आसà¥à¤¥à¤¾ का दीप पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ हो गया मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ की परीकà¥à¤·à¤¾ लेने का जो दà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¸ किया उसके लिठमाà¤à¤—ी कà¥à¤·à¤®à¤¾ और बोले -जो जग के परीकà¥à¤·à¤• हैं à¤à¤¸à¥‡ निगà¥à¤°à¤‚थ दिगंबर साधॠकी मैं परीकà¥à¤·à¤¾ करने जा रहा था, जरूर मेरी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ में खोट थी, जो मैं टंकोतà¥à¤•ीरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¯à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤—वान आतà¥à¤®à¤¾ पर ही संदेह कर रहा था।
इस पà¥à¤°à¤•ार वे पंडित जी मà¥à¤¨à¤¿ शà¥à¤°à¥€ के वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• गà¥à¤°à¥à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ को जानकर उनके अननà¥à¤¯ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ में से à¤à¤• गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤ बने।
पूजà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की इस घटना से आज समसà¥à¤¤ शिषà¥à¤¯ समूह को ही नहीं अपितॠसमगà¥à¤° गà¥à¤°à¥à¤à¤•à¥à¤¤ समाज को à¤à¥€ जीवंत शिकà¥à¤·à¤¾ मिलती है कि हमें कà¤à¥€ गà¥à¤°à¥ निंदा नहीं सà¥à¤¨à¤¨à¥€ चाहिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गà¥à¤°à¥ के ही समà¥à¤®à¤¾à¤¨ में शिषà¥à¤¯ का समà¥à¤®à¤¾à¤¨ समाहित होता है। शिषà¥à¤¯ के जीवन में गà¥à¤°à¥ ही परमातà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प होते हैं। सच, यही लकà¥à¤·à¤£ होते हैं जिनसे शिषà¥à¤¯à¤¤à¥à¤µ की सचà¥à¤šà¥€ पहचान होती है। गà¥à¤°à¥ की निंदा के साथ मिली सà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¶à¤‚सा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा चार कà¥à¤·à¤£ की होती है और à¤à¤¸à¥€ पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा से सनà¥à¤¤à¥à¤·à¥à¤Ÿ होने वाले शिषà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ और उनकी à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ बगà¥à¤²à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ कहलाती है। जो आज गà¥à¤°à¥ की बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ हमारे समकà¥à¤· कर रहा है, कल हमारी बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ किसी और से करेगा। अत: à¤à¤¸à¥‡ लोगों से सावधान रहते हà¥à¤ अपने जीवन को गà¥à¤°à¥à¤µà¤° की तरह गà¥à¤°à¥ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ की à¤à¤• मिसाल बनाà¤à¤à¥¤
गà¥à¤°à¥ जीवन (मम) जीवंत आदरà¥à¤¶,
शिकà¥à¤·à¤¾à¤“ं - घटनाओं का सरà¥à¤— ।
मेरे जीवन का यही विमरà¥à¤¶,
दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को कराऊठउनका दरà¥à¤¶ ।।
( घटनायें , ये जीवन की पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• से लिठगठअंश )