Developed by:
पथ भटकते पथिक है हम पुण्य से गुरु पग पाए
ViragVani
पाया है ज्ञान का भंडार
पिच्छी कमंडल वाले गुरुवर सबसे निराले
प्राणी रे प्राणी सत्संग कैसा
बरसो जरा ऐ फूलो डालियो को छोड़ के गुरु विराग आये आये मीत मन मयूर के
बार बार तेरा ध्यान लगाऊं हे गुरु करुणाधार
भक्ति में खो गए है गुरुवर हम आपकी
मन के मंदिर में गुरु को बिठाना बात हर एक के बस की नहीं है
माता श्यामा के आंगन खुशियों का बरसा सावन
मुझे गुरु विराग को ध्याना है
मेरे गुरुवर सा जग में कोई नहीं
मेरे तरस रहे दो नैन