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गुरुदेव की चाह में भटक रही यह आत्मा
ViragVani
गुरुवर अपने सबको भाये सबपे गुरुवर स्नेह लुटाये
गुरुवर आये ले के बाहरे धर्मामृत की शीट फुहारे
गुरुवर छोटी से भूल की इतनी बड़ी सजा मत दो
गुरुवर तेरा द्वारा हमको प्राणो से प्यारा
गुरुवर तेरा रूप है क्या जब भी देखूं लगे नया
गुरुवर विराग की जय बोलो
गुरुवर विराग सागर मेरे सर पर हाथ रख दो
गुरुवर विराग सिंधु का गुणगान करो रे प्रणाम करो रे
घर आँगन आज सजा दो द्वार पर चौक पूरा दो
चलो रे भाई एक साथ चलो रे सारे नगर के द्वारे
चारो दिशायें वंदन करे